आम आदमी पार्टी की पूरी राजनीतिक यात्रा कांग्रेस के नुकसान के दम पर आगे बढ़ती रही है। दिल्ली-पंजाब में उसने कांग्रेस को हराकर ही सत्ता पाई है। गुजरात-गोवा में भी उसने कांग्रेस के ही वोटों में सेंध लगाई है। आप नेता अब गुजरात, हरियाणा, राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस से हाथ मिलाने की कोशिश कर रहे हैं। जिन प्रदेशों में पार्टी की स्थिति मजबूत नहीं है, वहां अपनी राजनीतिक हैसियत बढ़ाकर कांग्रेस से समझौते की स्थिति में आने की कोशिश की जा रही है।
इस समय की परिस्थितियों में यदि दोनों दल साथ आते हैं, तो इससे कई राज्यों में गैर-भाजपाई वोटों का बंटवारा रुक सकता है। चुनावी संदर्भ में विपक्ष के लिए यह बहुत आवश्यक है। लेकिन इसके साथ ही यह भी सही है कि इससे आम आदमी पार्टी को कांग्रेस के वोटों के दम पर दूसरे राज्यों में भी आगे बढ़ने का अवसर मिल सकता है। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तुरंत लाभ की यह रणनीति भविष्य में कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है। दिल्ली में भाजपा को रोकने के लिए स्वयं पीछे होने की यही रणनीति कांग्रेस पर भारी पड़ी है। यही कारण है कि कांग्रेस के भी कई नेता आम आदमी पार्टी से एक सीमा से आगे समझौता न करने की सलाह दे रहे हैं।
केजरीवाल से समझौते के सबसे ज्यादा मुखर विरोधी के रूप में संदीप दीक्षित और अजय माकन सामने आए हैं। संदीप दीक्षित का कहना है कि कांग्रेस आज मजबूत स्थिति में है। ये देखते हुए ही अरविंद केजरीवाल उनसे समझौता करना चाहते हैं। लेकिन यदि उन्हें दिल्ली-पंजाब के अलावा दूसरे राज्यों में भी गठबंधन करने का अवसर दिया गया, तो यह कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। उन्होंने इससे जनता के बीच नकारात्मक संदेश जा सकता है।
क्यों समझौता करना चाहते हैं केजरीवाल
हरियाणा कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने अमर उजाला को बताया कि दिल्ली सेवा विधेयक का परिणाम संसद में क्या होना था, यह सबको पता था। लेकिन इसके बाद भी सभी विपक्षी दलों को साथ लाकर एक मजबूत गठबंधन का संदेश देने की कोशिश की गई है। इसका लाभ आने वाले लोकसभा चुनाव के दौरान हो सकता है। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने कहा कि पार्टी में कई नेताओं की राय है कि अरविंद केजरीवाल के साथ एक सीमा से आगे गठबंधन न किया जाए, क्योंकि यह पार्टी के हितों के लिए सही नहीं होगा।
हालांकि, गुजरात जैसे राज्य में जहां भाजपा आज अपराजेय स्थिति में है, वहां विपक्षी मतों में बंटवारा रोककर कुछ सीटों का लाभ लिया जा सकता है। विशेषकर गुजरात के सूरत जैसे क्षेत्र में जहां आम आदमी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया था, वहां मतों का विभाजन रोककर पहले की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया जा सकता है। लोकसभा चुनाव के बाद की परिस्थितियों को विचार करते हुए आगे की रणनीति पर काम किया जा सकता है।