Aditya-L1: 15 लाख किमी दूर ही क्यों जा रहा आदित्य-एल1, मिशन को लॉन्च करने के बाद रॉकेट का क्या होता है? जानें

Aditya-L1: 15 लाख किमी दूर ही क्यों जा रहा आदित्य-एल1, मिशन को लॉन्च करने के बाद रॉकेट का क्या होता है? जानें

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक उतारने के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक और इतिहास रच दिया। राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी ने शनिवार को आदित्य-एल1 मिशन की सफल लॉन्चिंग की। इस मिशन का उद्देश्य सूर्य का अध्ययन करना हैअंतरिक्ष यान को पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर स्थित लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) पर भेजा गया है। धरती से सूरज की दूरी 15 करोड़ किलोमीटर दूर है, फिर आदित्य-एल1 को 15 लाख किलोमीटर दूर ही क्यों भेजा जा रहा है? कोई उपग्रह सूरज के कितने करीब तक जा सकता है? मिशन के लिए जो रॉकेट भेजे जाते हैं वो कहां तक जाते हैं? लॉन्च के बाद रॉकेट का क्या होता है? आइये जानते हैं…

पहले बात आज की सफलता पर 
इसरो ने शनिवार को देश के पहले सूर्य मिशन ‘आदित्य-एल1’ को प्रक्षेपित किया। आदित्य-एल1 का प्रक्षेपण पीएसएलवी रॉकेट के जरिए आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च हुआ।

इसरो के आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान को कवर करने वाला पेलोड पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर निकलते ही अलग हुआ। इसके बाद पीएसएलवी के पृथक्करण का तीसरा चरण पूरा हुआ। अब सूर्य के अध्ययन के लिए ‘आदित्य-एल1’ को धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर ‘लैग्रेंजियन-1’ बिंदु तक पहुंचने में 125 दिन लगेंगे।

15 लाख किलोमीटर दूर ही क्यों जा रहा आदित्य-एल1?
इसरो के आदित्य-एल1 मिशन का गंतव्य पृथ्वी और सूर्य के बीच लैग्रेंजियन बिंदु एल1 है। एल1 बिंदु पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है जो पृथ्वी से सूर्य की दूरी का महज 1/100वां भाग ही है। वहीं पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है। एक बार मान भी लें कि किसी अंतरिक्ष यान को सूर्य तक भेजा जाए लेकिन यह बहुत मुश्किल होगा। इसकी मुख्य वजह सूर्य के आसपास अत्यधिक तापमान और खतरनाक विकिरण हैं।

सूर्य का सबसे गर्म भाग कोर यानी केंद्र होता है। इसका तापमान 1.5 करोड़ डिग्री सेल्सियस है। इससे असाधारण मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है जो बदले में गर्मी और प्रकाश के रूप में निकलती है। कोर में उत्पन्न ऊर्जा को बाहरी परत तक पहुंचने में दस लाख वर्ष तक का समय लगता है।

इस समय तापमान गिरकर लगभग 20 लाख डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। जब तक यह सतह पर आता है तब तक तापमान 5,973 डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाता है लेकिन यह अभी भी इतना गर्म होता है कि हीरा उबल जाए।

हालांकि, हमारा आदित्य-एल1 मिशन सूर्य से बहुत दूर रहेगा और अंतरिक्ष यान पर मौजूद उपकरणों के लिए तापमान किसी चिंता का विषय होने की उम्मीद नहीं है। लैग्रेंजियन बिंदु एल1 में ऐसा क्या खास है?
लैग्रेंजियन बिंदु अंतरिक्ष में वह स्थान होते हैं जहां दो वस्तुओं के बीच कार्य करने वाले सभी गुरुत्वाकर्षण बल एक-दूसरे को निष्प्रभावी कर देते हैं। लैग्रेंजियन बिंदु में एक छोटी वस्तु दो बड़े पिंडों (सूर्य और पृथ्वी) के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के तहत संतुलन में रह सकती है। लैग्रेंजियन बिंदु अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए बेहद उपयोगी होते हैं क्योंकि यहां कम ऊर्जा वाली कक्षाएं होती हैं। L1 बिंदु का उपयोग अंतरिक्ष यान अपनी स्थिति में बने रहने के लिए जरूरी ईंधन की खपत को कम करने के लिए कर सकते हैं। इसके साथ ही इस बिंदु से अंतरिक्ष के कुछ क्षेत्रों को बिना किसी बाधा के देखा जा सकता है। यह एक अंतरिक्ष यान को लगातार सूर्य का निरीक्षण करने की अनुमति देता है। सूरज के कितने करीब तक जा सकता है कोई उपग्रह? 
सूरज के पास तक पहुंचना अभी भी एक वैज्ञानिक चुनौती है। हालांकि, नासा ने सूर्य की सतह से करीब 61,15,507 किलोमीटर की दूरी पर उड़ान भरने के लिए 2018 में पार्कर सोलर प्रोब मिशन भेजा था। नासा दावा करता है कि मिशन ने सूर्य के वायुमंडल के सबसे बाहरी हिस्से (कोरोना) में पहली बार उड़ान भरी। इस दौरान पार्कर सोलर प्रोब ने कोरोना के बारे में वैज्ञानिकों की समझ को बदलने और सौर पवन की उत्पत्ति और विकास के बारे में ज्ञान का विस्तार करने के लिए सीटू माप और इमेजिंग का उपयोग किया था। लॉन्च के बाद रॉकेट का क्या होता है?
किसी भी अंतरिक्ष मिशन में अनिवार्य रूप से दो भाग होते हैं। पहला रॉकेट या कैरियर और दूसरा अंतरिक्ष यान जो उपग्रह या कोई अन्य पेलोड हो सकता है। रॉकेट का काम अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में ले जाने तक ही सीमित है।

अधिकतर मिशन में रॉकेट अपना काम पूरा करने के बाद नष्ट हो जाते हैं। कभी-कभी इनके टुकड़े धरती पर भी गिरते हैं। जुलाई मध्य में ऑस्ट्रेलिया के समुद्र तट पर भारतीय रॉकेट का मलबा मिला था। ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों ने बताया था कि रॉकेट का एक हिस्सा ऑस्ट्रेलिया के तटीय क्षेत्र सुदूर ज्यूरियन बे के पास देखा गया था। तब ऑस्ट्रेलियाई अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा था कि वस्तु संभवतः ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के तीसरे चरण का मलबा है। हालांकि यह पहली बार नहीं था जब ऑस्ट्रेलिया में अंतरिक्ष संबंधी मलबा मिला हो। पिछले साल अगस्त में न्यू साउथ वेल्स में एक भेड़ पालक को एलन मस्क के स्पेसएक्स मिशन से संबंधित एक मलबा मिला था।

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