Rajasthan Polls: राजस्थान में सजा चुनावी मंच; पिछली बार से कितनी बदली सियासत, इस बार किसकी पकड़ कितनी मजबूत?

Rajasthan Polls: राजस्थान में सजा चुनावी मंच; पिछली बार से कितनी बदली सियासत, इस बार किसकी पकड़ कितनी मजबूत?

राजस्थान में विधानसभा चुनाव का एलान कर दिया गया है। चुनाव आयोग ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव की तारीखों का एलान किया। राजस्थान में एक चरण मतदान कराया जाएगा। यहां 23 नवंबर को मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। चुनाव के परिणात सभी राज्यों के साथ तीन दिसंबर को आएंगे।

कहां-कब वोटिंग? 

राज्य मतदान की तारीख
मिजोरम 7 नवंबर
छत्तीसगढ़ 7 नवंबर, 17 नवंबर
मध्यप्रदेश 17 नवंबर
राजस्थान 23 नवंबर
तेलंगाना 30 नवंबर
नतीजे 3 दिसंबर

2018 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद काफी कुछ बदला
बात अगर राजस्थान विधानसभा की करें तो यहां 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद काफी कुछ बदल गया है। इस दौरान राजस्थान की जनता ने कांग्रेस की अंदरूनी कलह, सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच जारी शीतयुद्ध और भी काफी कुछ है। इन सब के बीच आइए जानते हैं बीते पांच साल में राज्य की सियासत में क्या-क्या बदला? 2018 के चुनाव नतीजे क्या रहे? कब-कब गहलोत सरकार पर संकट आया? राज्य में कांग्रेस की जीत का नेतृत्व करने वाले सचिन पायलट ने कब-कब गहलोत सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कीं?2018 में नतीजे क्या रहे थे?
राजस्थान विधानसभा के लिए चुनाव सात दिसंबर को हुए थे जबकि परिणाम 11 दिसंबर को घोषित हुए। अलवर की रामगढ़ सीट छोड़कर बाकी 199 सीटों पर मतदान हुआ। रामगढ़ सीट पर बसपा के प्रत्याशी लक्ष्मण सिंह के निधन के कारण चुनाव स्थगित हो गया था। इस चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को पटखनी देते हुए 99 सीटें जीतीं। इसके साथ ही प्रदेश में हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन का रिवाज कायम रहा। भाजपा को 73, मायावती की पार्टी बसपा को छह तो अन्य को 20 सीटें मिलीं।  कांग्रेस को बहुमत के लिए 101 विधायकों की जरूरत थी। कांग्रेस ने निर्दलियों और अन्य की मदद से जरूरी आंकड़ा जुटा लिया। इसके साथ ही राज्य की सत्ता में वापसी की।  एक तस्वीर से तय हुआ नेतृत्व
चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस के सामने मुख्यमंत्री का सवाल खड़ा हो गया। इसके लिए तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा सहित पार्टी के शीर्ष नेताओं के बीच गहन चर्चा हुई। इसके बाद अशोक गहलोत के हाथों में राज्य की सत्ता सौंपने का फैसला हुआइसी दौरान राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री पद के दावेदार दोनों नेताओं की खुद के साथ एक तस्वीर ट्वीट की। इस फोटो को उन्होंने कैप्शन दिया, ‘यूनाइटेड कलर्स ऑफ राजस्थान।’ बसपा और निर्दलीय विधायकों ने सरकार बनाने के लिए अपना समर्थन सौंप दिया जिसके मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बने।चुनाव के बाद सभी बसपा विधायक कांग्रेस में शामिल हुए
राज्य में चुनाव के बाद कभी भी सियासी हलचलें नहीं थमीं। सितंबर 2019 में एक बड़ा सियासी घटनाक्रम घटा जब बहुजन समाज पार्टी के सभी छह विधायक सत्तारुढ़ कांग्रेस में शामिल हो गए। कई दिनों तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के संपर्क में रहे बसपा विधायकों ने अपने विधायक दल के कांग्रेस में विलय की सूचना देने वाला एक पत्र विधानसभा अध्यक्ष सी.पी. जोशी को सौंपा। जब पायलट गुट की बगावत से खड़ा हुआ सरकार गिरने का खतरा
दिसंबर 2018 में सरकार बनने के 19 महीने बाद ही गहलोत सरकार के सामने बड़ा संकट खड़ा हुआ। यह संकट 12 जुलाई 2020 से शुरू होता है जब कांग्रेस के 19 विधायक गहलोत और पायलट गुटों के बीच विभिन्न मुद्दों पर विवादों के बाद दिल्ली आ गए। ये विधायक तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के खेमे के थे। इसी बीच पायलट ने दावा किया कि उनके पास कुल 30 विधायकों का समर्थन है।  कांग्रेस ने संभालने के लिए  रणदीप सिंह सुरजेवाला, अजय माकन और अविनाश पांडे को जयपुर भेजा। इस बीच, सचिन पायलट ने फिर से पुष्टि की कि वह भाजपा में शामिल नहीं होंगे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और अन्य नेताओं के साथ कांग्रेस विधायकों ने विश्वास प्रस्ताव के लिए एक बैठक की। सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों को भी इस मुद्दे पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। 14 जुलाई को उन्हें उनके दो विधायकों सहित राजस्थान के उपमुख्यमंत्री और राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया। शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। सचिन पायलट का समर्थन करने वाले कैबिनेट मंत्री विश्वेंद्र सिंह और रमेश चंद मीणा से भी उनके मंत्रालय छीन लिए गए। बगावत के लिए कांग्रेस यहीं नहीं रुकी बाद में पायलट को विधानसभा से उनकी सदस्यता भंग करने के बारे में राजस्थान विधान सभा के अध्यक्ष, सी. पी. जोशी ने नोटिस भेज दिया।

कांग्रेस आलाकमान से एक मुलाकात ने बदल दीं परिस्थितियां
10 अगस्त को, सियासी घटनाक्रम में बड़ा उलटफेर देखने को मिला, जब अचानक सचिन पायलट राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मिले। इसके बाद सचिन पायलट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिले और आखिरकार, राजस्थान कांग्रेस के दोनों गुट फिर से एक हो गए। 14 अगस्त को, अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली राजस्थान सरकार ने राजस्थान विधान सभा में ध्वनि मत से विश्वास मत जीत लिया। इस दौरान राजस्थान सरकार के सभी विधायक उपस्थित थे। चुनाव से साल भर पहले फिर दिखी बगावत
पिछले साल सितंबर में राजस्थान सरकार एक बार फिर संकट में आई जब चुनाव से पहले कांग्रेस ने राज्य में नेतृत्व बदलना चाहा। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के कई विधायकों ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाने के विरोध में इस्तीफा देने की धमकी दी। यह वो समय था जब गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए अपना नामांकन दाखिल करने की तैयारी में थे। 25 सितंबर की रात गहलोत गुट के 82 विधायक अचानक विधानसभा अध्यक्ष सी. पी. जोशी से मिले और अपना इस्तीफा दे दिया। हालांकि, स्पीकर ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया। इस्तीफे के बाद, देर रात तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अजय माकन और मल्लिकार्जुन खरगे को दिल्ली वापस बुला लिया। साथ ही, एआईसीसी के सदस्यों ने सोनिया गांधी से अशोक गहलोत को पार्टी अध्यक्ष की दौड़ से बाहर करने का अनुरोध किया। 26 सितंबर को सोनिया गांधी के आवास पर राज्य की स्थिति पर चर्चा के लिए एक बैठक हुई। सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को विधायकों से बातचीत के लिए जयपुर भेजा गया। 29 सितंबर को सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ने और राजस्थान के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का फैसला लिया।

राज्य में उपचुनाव भी हुए?
विधानसभा चुनाव 2018 के बाद कई सीटों पर उपचुनाव भी हुए जिनमें सत्ताधारी कांग्रेस हावी रही। अप्रैल 2021 में सुजानगढ़, सहाड़ा व राजसमंद सीटों पर उपचुनाव हुए। ये सीटें संबंधित विधायकों के निधन के कारण रिक्त हुई थीं। इसके परिणामों की बात करें तो सहाड़ा और सुजानगढ़ में कांग्रेस को जीत मिली, जबकि राजसमंद में भाजपा ने बाजी मारी। नवंबर 2021 में वल्लभनगर और धरियावद सीट पर चुनाव कराए गए थे। इन दोनों सीट पर कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया था। बता दें कि ये सीटें संबंधित विधायकों के निधन के कारण खाली हुई थीं। पिछले साल दिसंबर में सरदारशहर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था। इसमें कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। यह सीट विधायक भंवरलाल शर्मा के निधन के कारण रिक्त हुई थी।

अभी क्या है विधानसभा की स्थिति?
2018 के चुनाव के बाद 200 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस की 99, भाजपा की 77 सीटें थीं। छह सीटें बसपा और 20 अन्य के खाते में गई थीं। इस वक्त 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 108, भाजपा के 70 और 21 अन्य हैं। वहीं उदयपुर सीट वरिष्ठ भाजपा नेता गुलाबचंद कटारिया के इस्तीफे के कारण इसी साल फरवरी महीने में खाली हो गई थी जब उन्हें असम का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया।

इस चुनाव में कौन से मुद्दे हावी होंगे, किसकी तैयारी कैसी है?
2018 में राजस्थान विधानसभा के चुनाव नतीजे 11 दिसंबर को आए थे यानी इस बार जनता का फैसला भी जल्द ही आ जाएगा। ऐसे में इस चुनाव में कांग्रेस के सामने अपना किला बचाने की चुनौती होगी। वहीं, भाजपा अपनी वापसी की कोशिश करेगी। मौजूदा सरकार के सामने बेरोजगारी और अपराध जैसे बड़े मुद्दे हैं जिन्हें विपक्ष लगातार उठा रहा है। वहीं चुनाव से चुनाव के कुछ महीने पहले राइट टू हेल्थ बिल पारित कराकर सरकार इसे ऐतिहासिक बता रही है। इसके पहले राज्य सरकार 10 लाख तक का स्वास्थ्य बीमा कवर देने वाली चिरंजीवी योजना लागू कर चुकी है।

चुनावी तैयारियों की बात करें तो कांग्रेस और भाजपा लगातार बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं। चुनावी विश्लेषकों की मानें तो भाजपा इस बार मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ सकती है जबकि कांग्रेस अभी भी अशोक गहलोत को सामने रख रही है। इस बार आम आदमी पार्टी भी राज्य विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान लगातार प्रदेश के दौरे कर रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *