शनिवार (सात अक्तूबर) को इस्राइल और हमास के बीच शुरू हुई लड़ाई अभी भी जारी है। आतंकी संगठन हमास के हमले ने जहां दुनिया में तहलका मचा दिया है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका समेत कई देश इस हमले की निंदा कर रहे हैं। इस बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने हमास के हमलों को बेहद क्रूर बताया है। बाइडन ने कहा कि उनका मानना है कि यहूदी नरसंहार (होलोकॉस्ट) के बाद यह यहूदियों के लिए सबसे घातक दिन है। आइये जानते हैं कि आखिर क्या था होलोकॉस्ट जिसका जिक्र बाइडन ने किया?पहले जानते हैं बाइडन ने कहा क्या?
राष्ट्रपति बाइडन ने बुधवार को व्हाइट हाउस में यहूदी नेताओं की गोलमेज बैठक को सम्बोधित किया। बाइडन ने कहा कि उन्होंने बुधवार सुबह फिर से इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से बात की। इस दौरान उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस्राइल को कोई भी कार्रवाई युद्ध के नियमों के अनुसार करनी चाहिए। बाइडन ने कहा, ‘मैं नेतन्याहू को 40 वर्षों से जानता हूं। हमारे बीच बहुत ही स्पष्ट रिश्ता है। एक बात जो मैंने कही है कि वास्तव में महत्वपूर्ण है कि इस्राइल सभी गुस्से और हताशा में भी युद्ध के नियमों के अनुसार अपने कदम उठाए।’
अब जानते हैं होलोकॉस्ट क्या था?
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजियों ने लगभग 60 लाख यूरोपीय यहूदियों की हत्या कर दी थी। इसी नरसंहार को होलोकॉस्ट कहा जाता है। होलोकॉस्ट को समूचे यहूदी लोगों को जड़ से खत्म कर देने का सोचा-समझा और योजनाबद्ध प्रयास बताया जाता है।
दरअसल, नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी (NSDAP) को नाजी कहा जाता था। नाजी पार्टी जर्मनी में एक राजनीतिक पार्टी थी जो 1919 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद स्थापित हुई थी। यह पार्टी 1920 के दशक में बहुत लोकप्रिय हुई, क्योंकि उस समय जर्मनी प्रथम विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद गंभीर राजनीतिक संकट से गुजर रहा था। जर्मनी युद्ध हार गया था और विजेताओं को बहुत सारे पैसे देने के लिए मजबूर किया गया था और अर्थव्यवस्था बेहद बुरे दौर में थी।
सत्ता का इस्तेमाल यहूदियों के उत्पीड़न के लिए किया
1933 में जर्मनी में सत्ता संभालने के बाद से नाजियों ने जर्मन यहूदियों को मानव और नागरिक अधिकारों से वंचित करने के लिए दुष्प्रचार, उत्पीड़न और कानून का इस्तेमाल किया। उन्होंने सदियों से चली आ रही यहूदी विरोधी भावना को अपनी नींव के रूप में इस्तेमाल किया।
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने पर जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण किया और लगभग 20 लाख पोलिश यहूदियों को हिंसा और जबरन श्रम का शिकार बनाया। कब्जे के पहले महीनों में हजारों यहूदियों की हत्या कर दी गई। कब्जे के कुछ ही समय बाद पोलिश यहूदियों को एक निश्चित क्षेत्र तक ही सीमित कर दिया गया, जिन्हें ‘यहूदी बस्ती’ कहा जाने लगा। इन यहूदी बस्तियों में रहने की स्थितिया भयावह थीं।
हिटलर यहूदियों को जड़ से मिटाने के लिए अपने फाइनल सोल्यूशन को पूरी ताकत के साथ अमल में ला रहा था। उसके सैनिक यहूदियों को कुछ खास इलाकों में ठूसते थे। उनसे काम करवाते, उन्हें एक जगह इकट्ठा करने और मार डालने के लिए विशेष कैंप स्थापित किए गए, जिनमें ऑश्वित्ज सबसे कुख्यात था। पोलैंड का ऑश्वित्ज हिटलर की हैवानियत का सबसे बड़ा सेंटर था। यह नाजी हुकूमत का सबसे बड़ा नजरबंदी शिविर था।
नाजी खुफिया एजेंसी एसएस यहां पर यूरोप के सभी देशों से यहूदियों को पकड़कर ले आती थी। जहां पहुंचते ही उनमें से कई लोगों को गैस चेंबर में डालकर मार दिया जाता था। वहीं कई ऐसे भी थे जिन्हें काम करने के लिए जिंदा रखा जाता था। उनकी पहचान मिटा दी जाती थी। कैदियों के बाह में एक नंबर गोद दिया जाता था। उसके बाद से कोई भी अपना नाम नहीं ले सकता था। कैदियों की पहचान सिर्फ नंबरों से होती थी।
बंदी बनाए गए यहूदी लोगों को मरने तक यातनाएं दी जाती थी। उनके सिर के बाल उतार लिए जाते थे। कपड़ों की जगह चीथड़े पहना दिए जाते थे। इसके बाद उन्हें बस जिंदा रहने के लिए जरूरी खाना दिया जाता था। इतना ही नहीं उन्हें तब तक यातना दी जाती थी जब तक वे निष्क्रिय नहीं हो जाते थे।
जो ज्यादा कमजोर हो जाते थे, जिनसे काम नहीं लिया जा सकता था। उन्हें बारी-बारी से गैस चैम्बर में ले जाकर मार दिया जाता था। हिटलर के कैदी, बाहर से आने वाले दूसरे यहूदी नजरबंदियों के लिए इमारतें बनाते थे।
1945 में दूसरे विश्व युद्ध के खात्मे के समय जब सोवियत संघ की सेनाओं ने ऑश्वित्ज पर कब्जा किया, तब जाकर ये सिलसिला खत्म हुआ। उस समय भी इस कैंप में सात हजार कैदी थे। हालांकि सोवियत सेना के हमले के पहले ही हार का अंदेशा देख नरसंहार से जुड़े कई सबूतों को नाजियों ने मिटा दिया था। नरसंहार के अंत तक यहूदी बस्ती, सामूहिक गोलीबारी, एकांत शिविरों और मृत्यु शिविरों में 60 लाख यहूदी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की हत्या कर दी गई थी