Bihar Reservation: क्या अदालत में टिक पाएगा बिहार आरक्षण विधेयक, जानें सुप्रीम कोर्ट की 50% की सीमा का पेंच

Bihar Reservation: क्या अदालत में टिक पाएगा बिहार आरक्षण विधेयक, जानें सुप्रीम कोर्ट की 50% की सीमा का पेंच

बिहार में जातिगत आरक्षण बढ़ाने वाला विधेयक शुक्रवार को विधान परिषद से भी पारित हो गया। इससे पहले गुरुवार को इसे विधानसभा से पारित कराया गया था। इससे राज्य में जातिगत आरक्षण की सीमा को 50% से बढ़कर 65% हो जाएगी। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार के इस कदम से राज्य में कुल आरक्षण 60% से बढ़कर 75 हो जाएगा। इसमें आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण पहले से ही लागू है।  ऐसे में सवाल उठने लगा है कि क्या इस आरक्षण विधेयक से सुप्रीम कोर्ट की 50% वाली सीमा का क्या होगा? आखिर क्या है सुप्रीम कोर्ट का निर्णय जिससे 50% जातिगत आरक्षण की सीमा तय की गई थी? अभी बिहार में आरक्षण को लेकर क्या हो रहा है? क्या बिहार आरक्षण विधेयक को कानूनी चुनौती मिलेगी? आइये जानते हैं…पहले जानते हैं सुप्रीम कोर्ट का निर्णय क्या है जिससे 50% जातिगत आरक्षण की सीमा तय की गई थी? 
बिहार में 50% से ज्यादा जातिगत आरक्षण देने वाले विधेयक से सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फैसले की चर्चा होने लगी है। दरअसल, सर्वोच्च अदालत ने 1992 के इंदिरा साहिनी फैसले में शिक्षा और रोजगार में मिलने वाले जातिगत आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा तय की थी। हालांकि, जुलाई 2010 के एक अन्य फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों को फीसदी की सीमा से अधिक आरक्षण देने की सशर्त अनुमति दे दी। ऐसे मामलों में अदालत ने शर्त यह रखी कि राज्य चाहें तो 50 फीसदी से अधिक जतिगत आरक्षण बढ़ा सकते हैं जिसे उचित ठहराने लिए उन्हें वैज्ञानिक आंकड़े प्रस्तुत करने होंगे। अभी किन राज्यों में लागू है 50% से ज्यादा जातिगत आरक्षण?
कई राज्य ऐसे हैं जहां 1992 के फैसले से पहले ही 50 फीसदी से अधिक जातिगत आरक्षण लागू है। इनमें तमिलनाडु है जहां एक कार्यकारी आदेश के जरिए 1989 में 69% आरक्षण लागू कर दिया गया था। वहीं कुछ राज्यों में हाल के वर्षों में इस सीमा को बढ़ाया गया है जिन्हे अदालती चुनौती का सामना करना पड़ा है। हरियाणा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान जैसे कई राज्यों ने 50% आरक्षण की सीमा से अधिक वाले कानून पारित किए हैं और वे निर्णय भी न्यायालयों में चुनौती के अधीन हैं।

इसके अलावा केंद्र सरकार ने 2019 में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10% आरक्षण देने के लिए 103वां संविधान संशोधन किया। इसके तहत अनुच्छेद 15 में एक नए खंड को शामिल किया गया। जब केंद्र के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली, तो उसने दलील दी कि अनुच्छेद 15 में नया खंड जोड़ने से 50% की अधिकतम सीमा लागू करने का सवाल कभी नहीं उठ सकता है जो राज्य को ईडब्ल्यूएस की बेहतरी और विकास के लिए विशेष प्रावधान बनाने का अधिकार देता है।अभी बिहार में आरक्षण को लेकर क्या हो रहा है? 
बिहार विधान मंडल के शीतकालीन सत्र का शुक्रवार को आखिरी दिन था। हंगामे के बीच चौथे दिन यानी गुरुवार को विधानसभा आरक्षण संरक्षण विधेयक 2023 पास हो गया। राज्य की विपक्षी पार्टी भाजपा ने भी अपना समर्थन दिया। इससे पहले गुरुवार को आरक्षण संशोधन बिल विधानसभा में पास हुआ था।

संशोधन विधेयक 2023 का उद्देश्य आरक्षण 60 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत (65 प्रतिशत + 10 प्रतिशत EWS) करने का प्रस्ताव है। संसदीय कार्य मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि मूल रूप से आरक्षण को बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने का ही प्रस्ताव है। EWS के रूप 10 प्रतिशत आरक्षण केंद्र सरकार ने पहले ही दूसरे अधिनियम से कवर है। बिहार आरक्षण विधेयक से सुप्रीम कोर्ट की 50% वाली सीमा का क्या?
बिहार में आरक्षण विधेयक के बीच महाराष्ट्र में मराठाओं के लिए अलग से आरक्षण की मांग को लेकर हंगामा जारी है। दरअसल, 2018 में महाराष्ट्र विधानमंडल से मराठा समुदाय के लिए शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16% आरक्षण का प्रस्ताव वाला एक विधेयक पारित किया गया। विधेयक में मराठा समुदाय को सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग घोषित किया।

विधानमंडल में पारित होने के बाद मराठा आरक्षण का मामला अदालत में चला गया। जून 2019 में बम्बई उच्च न्यायालय ने मराठा आरक्षण की संवैधानिकता को बरकरार रखा, लेकिन सरकार से इसे राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के अनुसार 16% से घटाकर 12 से 13% करने को कहा।

इस आरक्षण को बड़ा झटका तब लगा जब मई 2021 को जब सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक ठहराया और कानून को रद्द कर दिया। अदालत ने माना कि मराठा आरक्षण 50 फीसदी सीलिंग का उल्लंघन कर दिया गया था। अब दोबारा इस आरक्षण के मांग को लेकर पूरे महाराष्ट्र में धरने-प्रदर्शन हो रहे हैं। ऐसे में जब बिहार में आरक्षण बढ़ाने वाला विधेयक पारित हुआ तो सवाल उठा कि यहां सुप्रीम कोर्ट की 50% वाली तय सीमा का होगा और क्या यह विधेयक भी अन्य की तरह अदालती हो जाएगा। इस पर इलाहबाद उच्च न्यायालय के अधिवक्ता सिद्धार्थ शंकर दुबे कहते हैं, ‘बिहार आरक्षण वाला विधेयक को अदालत में चुनौती मिलेगी।’क्या इसमें जातिगत जनगणना का फायदा मिलेगा?
बिहार में जातिगत आरक्षण अब 65% पर पहुंच गया है। इसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50 की सीमा के बारे में नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार में आरक्षण में बढ़ोतरी जाति सर्वेक्षण के बाद हुई है।

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